गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

श्रीमद्भागवत महापुराण लेख संख्या - 01 (आम जानकारी)

        श्री मद्भागवत महापुराण 18 पुराणों  में  से एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है।  इसके रचैता  भगवान व्यास  जी हैं।  इस ग्रंथ  में 18000  श्लोक  हैं। इसी  ग्रंथ में  बताया  गया  है  कि अनेक ग्रंथ लिख लेने के बाद भी जब व्यास जी संतुष्ट नहीं हुए तो नारद जी के कहने पर जीव की मुक्ति  के  लिए भगवान की लीलाओं पर आधारित भक्ति युक्त ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की।  व्यास जी द्वारा इस ग्रंथ में, जो कि  मुख्य  रूप से जीव  की  मुक्ति  के बारे में है,  मुख्यता  निम्नलिखित बातों के बारे में लिखा गया है।
  1.परमात्मा
       भगवान को नित्य  एवं शाश्वत, शुद्ध  चैतन्य, एवं  आनन्द स्वरुप कहा गया है। यह भी कहा  गया है कि जल, पृथ्वी, वायु तथा अग्नि से बने इस विश्व को बनाने, पालन करने तथा संहार करने वाले भी भगवान ही हैं। वो ही तीनों  तापों  अर्थात्  कष्टों (अध्यात्मक, आधिदैविक, तथा आधिभौतिक) का  नाश करने वाले हैं। भगवान असीम हैं, उनका कोई आदि और  अन्त नहीं है। सारा ब्रह्मांड एवं अनेकानेक दूसरे ब्रह्माण्ड सब  उनका  ही विस्तार हैं। उनसे परे कुछ भी नहीं है। भगवान  एक  है  परन्तु समय समय पर पाप को मिटाने और सच्चे  भक्तों के  दुख  दूर करने के लिए अवतार ग्रहण करते हैं। वो इतने  विशाल  हैं कि उनके सामने हमारा पूरा ब्रह्माण्ड केवल एक सरसों के दाने के बराबर ही होता होगा।
   2. सृष्टि रचना
 श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान ही सृष्टि की उत्पत्ति एवं पालन करते हैं, वे ही समय आने पर पूरी सृष्टि को अपने में समेट लेते हैं। और फिर यह क्रम इसी तरह चलता रहता है।
   3. भगवान के अवतार
 श्रीमद्भागवत में  बताया  गया  है कि  परमात्मा  ने  पृथ्वी  पर अभी तक कुल 23 बार अवतार धारण किए  हैं  और  कलयुग के  अंत में चौबीसवें अवतार के रूप में कल्कि अवतार  धारण करेंगे। इन चौबीस अवतारों में से दस अवतार मुख्य हैं। श्री कृष्ण जी  की लीलाओं का वर्णन इस ग्रंथ में विशेष तौर पर विस्तार से किया गया है।  यह सभी  भगवान  विष्णु  जी के  अवतार हैं।  इसके इलावा ब्रह्मा जी एवं भगवान शिवजी की कथा का  भी  वर्णन किया गया है।
  4. भगवान के भक्त                       
 इस ग्रंथ में अनेक महान भक्तों की कथाओं का वर्णन है। जैसे भक्त प्रहलाद, ध्रुव भक्त आदि। भक्तों के 5 प्रकार कहे हैं:-
            १. शांत भाव वाले भक्त जैसे भरत जी,
            २. वात्सल्य भाव वाले भक्त जैसे यशोदा जी,
            ३. दास्य भाव वाले भक्त जैसे हनुमान जी,
            ४. साख्य भाव वाले भक्त जैसे  अर्जुन जी,
            ५. माधुर्य भाव वाले भक्त जैसे गोपियां ।
  5. काल चक्र और वंश वर्णन
  श्रीमद्भागवत महापुराण में पूरे काल चक्र को कल्प, मन्वन्तर, चतुर्युग, एवं युग आदि में विभाजित करके  विस्तार  से  बताया गया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न मनुओं, प्रजापतियों और वंशों जैसे सूर्य वंश एवं चंद्र वंश आदि का  वर्णन किया गया है।
  6. भक्ति से मुक्ति
इस महान ग्रंथ में भक्ति की बहुत महिमा बताई गई  है।  विशेष करके कलयुग में भक्ति को ही  मुक्ति  का  मुख्य  साधन  माना गया है। और इस भक्ति को प्रगाढ़ करने  के  लिए  वैराग्य  एवं त्याग की आवश्यक्ता रहती है जो श्रीमद्भागवत  महापुराण  की कथा को सुनने, सुनाने और उस पर चिंतन करने से  ही  संभव हैं।
 7. भागवत किसने किसको सुनाई
 १. नारायण जी ने ब्रह्मा जी को:-
 जब ब्रह्मा जी को, भगवान नारायण ने,  कमल के फूल  में  से प्रकट किया, तो ब्रह्मा जी को कुछ  समझ  नहीं  आया  कि  मैं कौन हूं और किस लिए हूं। उस समय, उन्हें तप करने के  लिए प्रेरणा हुई।  तप करने पर  उन्हों ने  साक्षात  भगवान  नारायण जी के दर्शन किए। प्रार्थना करने पर भगवान् ने  समझाया  कि मैने ही तुम्हें सृष्टि की रचना  करने  हेतु  प्रकट  किया  है।  अब तुम मेरी कृपा से सृष्टि की रचना  करो।  इस  पर  ब्रह्मा  जी  ने प्रार्थना की कि  मैं ऐसा क्या करूं जिस के करने से सृष्टि रचना करने में कोई बाधा उत्पन्न ना हो और मुझे  इस  कार्य  से  कोई अभिमान भी ना हो। भगवान  नारायण  ने  तब  ब्रह्मा  जी  को श्रीमद्भागवत कथा का आशीर्वाद प्रदान किया और  बताया भी कि  जो कुछ हो रहा है सब मैं  ही  कर  रहा  हूँ।  सृष्टि  से  पूर्व केवल मैं ही था। मुझ से भिन्न कुछ भी नहीं था, ना  है और  ना होगा।
२. ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र नारद जी को:-
 एक बार नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा कि आप तो सारी सृष्टि की उत्पत्ति करते हैं। फिर आप किस का  ध्यान  कर  रहे  हैं ? क्या आप से बड़ा भी कोई है ?  इस प्रश्न के उत्तर में ब्रह्मा  जी ने श्री नारद जी को यह कथा सुनाई। और बताया कि  भगवान के इलावा और कुछ भी सत्य नहीं है।
 ३. नारद जी के द्वारा श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास जी को:-
 जब व्यास जी महाराज एक वेद को चार भागों  में  विभाजित कर चुके थे, कई पुराण लिख चुके थे, और यहां तक  कि  कई दूसरे ग्रंथ भी लिख चुके थे, तब भी उनके मन को शान्ति  नहीं मिल रही थी। उन्होंने यह सब  इस  लिए  किया  था  कि  कम बुद्धि होते हुए भी लोग तत्व को अच्छी तरह समझ सकें। परंतु उन्हें ऐसा होता हुआ प्रतीत नहीं हुआ।  व्यास  जी  को  दुःखी देख कर नारद जी उनके पास आए और उनकी व्यथा को देख कर उन्हें ऐसा ग्रंथ लिखने के लिए  कहा  जिसमें  भगवान  की अनेक लीलाओं का वर्णन हो। उन्होंने कहा कि ऐसा  होने  पर जब लोग इस ग्रंथ को पढ़ेंगे  या  सुनेंगे तो  उनके  अन्तःकरण  में  भक्ति  जागृत  होगी।  भक्ति  से  अन्तःकरण  शुद्ध  होगा ।  और  चित्त  शुद्ध  हो  जाने पर ही भगवान की प्राप्ती संभव हो सकती है। उस के लिए नारद जी ने व्यास जी को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई।
 ४.श्री व्यास जी के द्वारा अपने  पुत्र श्री शुकदेव जी को:-
 श्री शुकदेव जी बचपन से ही विरक्त थे।  बहुत छोटी आयु  थी जब उन्होंने घर छोड़ दिया था। बाद में उन्होने अपने पिता  जी को ही अपना गुरु मानकर उनसे भागवत कथा श्रवण की।
 ५.श्री शुकदेव जी ने राज ऋषि परीक्षित जी को:-
 महाराज परीक्षित अर्जुन के पौत्र एवं अभिमन्यु तथा उत्तरा के पुत्र थे। उन्होंने सात दिन में  श्री शुकदेव  जी  से  श्रीमद्भागवत जी की कथा सुन कर परमपद प्राप्त कर  लिया  था।  इन  सब का विस्तार अगले लेखों में किया जाएगा।
                        जय श्री कृष्ण जी की 
       




         
   
             

रविवार, 20 अक्टूबर 2019

ਚਮਕਦਾ ਸਿਤਾਰਾ

ਸਿਤਾਰਾ ਉਹ ਹੈ ਜੋ ਮਿੱਧੇ ਹੋਏ ਘਾਹ ਤੇ ਨਹੀਂ ਚਲਦਾ,
ਨਵੀਆਂ ਡੰਡੀਆਂ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਲਕੀਰਾਂ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।
ਲਗਾਤਾਰ ਚਲਦਾ ਹੈ ਪਰ ਡੋਲਦਾ ਨਹੀਂ,
ਸਭ ਦੀ ਸੁਣਦਾ ਹੈ ਪਰ ਬੋਲਦਾ ਨਹੀਂ।
ਵਿਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਆਪਣੀ ਹੀ ਤੱਕੜੀ ਤੇ ਤੋਲਦਾ ਹੈ,
ਗੁੰਝਲਾਂ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਹੀ ਸੂਤਰ ਨਾਲ ਖੋਲਦਾ ਹੈ।
 ਉਹ ਡਿਗਦਾ ਹੈ ਪਰ ਢਹਿੰਦਾ ਨਹੀਂ,
ਉਹ ਝਲਦਾ ਹੈ ਪਰ ਕਹਿੰਦਾ ਨਹੀਂ।
ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਦੀਵੇ ਵਿਚ ਇਕਾਗਰਤਾ ਦਾ ਤੇਲ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ,
ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਤਾ ਦੀ ਬੱਤੀ ਨੂੰ
ਉਹ ਹੌਂਸਲੇ ਦੀ ਤੀਲੀ ਨਾਲ ਜਗਾਉਂਦਾ ਹੈ
ਉਸ ਰੋਸ਼ਨੀ ਦੀਆਂ ਕਿਰਨਾਂ ਨਾਲ
ਨਵੀਆਂ ਡੰਡੀਆਂ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ,
ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜੀਵਨ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਆਪ ਮਰਦਾ ਹੈ।
ਲੋਕ ਉਸਦੇ ਵਹਾਅ ਵਿਚ ਵਹਿੰਦੇ ਹਨ,
ਇਸੇ ਲਈ ਉਸਨੂੰ ਚਮਕਦਾ ਸਿਤਾਰਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ
                         ਪ੍ਰਵੀਨ ਕੁਮਾਰ