शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ ( राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष )

 मैं अशिक्षित से शिक्षित हुई, अबला से सबला।
पुरुष के कन्धे से कन्धा मिला,देश का भाग्य बदला।
पुरानी से लेकर नई तक, सब जिम्मेदारियां निभाती हूं।
ऑटो रिक्शा से लेकर, जहाज तक चलाती हूं।
सड़क पे चलते फिर भी, मेरी अस्मत क्यूं लुट जाती है।
उन नर रूपी दैत्यों को, फिर मौत, क्यूं नहीं आती है।
अस्मत लूटी, फूंक दिया, और मार दिया हथियारों से।
लड़की पूछ रही है, सभी समाज के ठेकेदारों से।
       आधी आबादी पर सदियों से  अत्याचार हो  रहा  है।  स्त्री को दूसरे दर्जे का नागरिक समझ कर और  उस की  उन्नति  में बाधक बन कर यह समाज  उसका  तो  नुकसान  कर ही  रहा है,दूसरी ओर पूरे समाज को  भी  पीछे  धकेल  रहा  है।  जिस समाज की नारी शिक्षित नहीं वो समाज हमेशा अधूरा ही रहता है। कहते हैं ना कि यदि परिवार की एक बेटी शिक्षित हो जाती है  तो एक नहीं बल्कि दो दो परिवारों को शिक्षित कर देती है।
       दुख होता है जब आज भी लोग  बेटी  को  अच्छी  शिक्षा देने के बजाए उसकी शादी की चिंता अधिक करते हैं।  उसकी शिक्षा पर खर्च करने के बजाए उसकी शादी के  लिए  धन  को संभाल संभाल कर रखते हैं। उसको अपने पैरों पर  खड़ा  होने में सहयोग देने के बजाय उसको पराई अमानत समझ कर एक अनजान परिवार में भेज देने की जल्दी करते हैं। वो  छोटी  सी परी जिसने आगे बढ़  कर  कल्पना चावला,  सानिया नेहवाल, सानीया मिर्जा आदि बनना था इसको कम उम्र  में  ही  गृहस्थ की बेड़ियां पहना दी जाती हैं।
        यहीं पर बस नहीं उससे भी बड़ा दुख तो इस  बात का है कि कई मनहूस प्राणी बेटी को पढ़ाने की बात तो दूर  बेटी  को पैदा होने से पहले ही उसकी जीवन लीला समाप्त कर  देते हैं। ऐसे लोग जिनकी इतनी घटिया और राक्षसी सोच है  और  जो बेटी को बोझ समझते हैं दरअसल वो स्वयं इस पृथ्वी पर बहुत बड़ा बोझ हैं। उनकी संवेदना मर चुकी है। वो आज तक समझ ही नहीं नहीं पाए कि जिस घर में बेटी पैदा नहीं  होती  वो  घर कितना निष्प्राण प्रतीत होता है। बेटी  ही  तो  घर  की  असली रौनक होती हैं। यह सब कुछ समझ पाना शायद उनके बस की बात भी नहीं है क्योंकि उनको तो स्वार्थ के आगे कुछ नज़र ही नहीं आता।  आज के युग का शायद सब  से  घृणित  अपराध बन गया है भ्रूण हत्या।
      रही सही कसर पूरी कर देते हैं नीच सोच  रखने  वाले  वो दरिंदे जो स्त्री को केवल वासना पूर्ति का साधन मान कर सारी मर्यादाओं को लांघ जाते हैं।
     वर्तमान सरकार की यह बहुत ही  कल्याण  कारी  योजना, बेटी ' पढ़ाओ बेटी बचाओ' अपने आप में एक अनूठी  योजना है जो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी।  भारतीय  सरकार  के द्वारा इस योजना को 22 जनवरी, 2015 को कन्या  शिशु  के लिए  जागरूकता  का  निर्माण  करने  के  लिए  और  महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया था।
       इस योजना का उद्देश्य भ्रूण हत्या को रोकना, कन्या शिशु की रक्षा, शिक्षा के क्षेत्र में  महिलाओं की  भूमिका को  बढ़ाना, लिंग अनुपात को सही दिशा में बढ़ाना और छोटी  आयु  में  हो रहे विवाहों को रोकना आदि है।
      यह बात सही है कि केवल योजनाएं बना देने से बात नहीं बनती। इनको संकल्प पूर्वक लागू करना होता  है। और  खास करके वो योजनाएं जिनका संबंध लोगों की सोच  और उनकी मान्यताओं से हो, उनमें तो  और ज्यादा  सतर्कता,  जिम्मेदारी, कर्मठता और पक्के इरादे की आवश्यकता होती  है।  मुझे  तो पक्का विश्वास है कि सरकार और समाज के लोग पूरी तरह से संकल्प करके यदि इस योजना को  सफल  बनाने  का  प्रयास करेंगे तो सफलता का  कोई ना  कोई  मार्ग  आवश्य  ही  मिल जाएगा। कवि ने कहा है कि:
  सामने हो जब लक्ष्य हमारे, मन में गर विश्वास भरा हो
  कोई शंका हो ना मन में, चित्त हमारा पूर्ण खरा हो
  कितना भी मुश्किल हो चाहे, करने को जब तुल जाता है
  इच्छा जब संकल्प बने तो, एक झरोखा खुल जाता है

    

सोमवार, 20 जनवरी 2020

अंदर के रावण को कैसे जीतें

     हमारे अंदर हमेशा अच्छे और बुरे विचार  आते  और  जाते रहते हैं। हमारी मानसिक अवस्था सदा एक जैसी  नहीं  रहती। परंतु कुछ लोग ऐसे हुए हैं जिन्होंने प्रयत्न पूर्वक इस पर  कार्य किया और अपने अंदर  उठने  वाले  नकारात्मक  और  दुष्टता पूर्ण विचारों को नष्ट कर दिया। उन्होंने  अपने  अंदर  ऐसे  गुण भर लिए कि उनके अवगुण कम ही  नहीं  हुए  बल्कि  नष्ट  हो गए। जब किसी व्यक्ति की यह अवस्था बन जाती है तो  कहते हैं कि उसने अपने अंदर के रावण को जीत लिया है। ऐसे लोगों का संसार और अंतर मन दोनों बैकुंठ रूप  हो  जाते  हैं।  यही दर्शन हमें श्री रामचरितमानस में स्वामी  तुलसीदास जी  ने  भी दिया है।
 स्वामी तुलसी  दास जी द्वारा रचित श्री रामचरितमानस  में श्री राम रावण युद्ध के समय जब विभीषण ने देखा कि  रावण  तो युद्ध के लिए सब प्रकार  की  सामग्री लेकर और रथ पर सवार हो कर आया है और श्री राम जी के पास तो रथ भी नहीं है तो उसने बड़े ही अधीर। होकर, स्नेह  पूर्वक  भगवान राम  जी  से प्रार्थना करते हुए प्रश्न किया कि:-
                नाथ न रथ नहीं तन पद त्राना।
                केहि बिधी जितब बीर बलवाना।।
 हे रघुवीर, रावण तो रथ पर सवार होकर आया है  परंतु आप के पास ना तो कोई रथ है ना शरीर  की  रक्षा के  लिए  कवच है और ना ही पांव में  जूते हैं। ऐसे आप इतने  बलवान  योद्धा को कैसे जीत पाएंगे?
इस पर  विभीषण को उत्तर देते हुए और  संपूर्ण  मानव  जाति को एक संदेश देने के लिए  श्री राम जी ने कहा कि:-
                सुनहुं सखा कह कृपा निधाना।
                जेहिं जय होई सो स्यंदन आना।।
हे मित्र विभीषण , जिस से विजय प्राप्त हो सकती है, मैं  ऐसा रथ ले आया हूँ।
                 सौरज  धीरज तेहिं रथ चाका,
                 सत्य सील दृढ ध्वाजा पताका।
अर्थात इस रथ रथ  की  विशेषताएं यह हैं  कि शौर्य  और  धैर्य इसके दो पहिए हैं। सत्य और  शील (सदाचार) इसके मजबूत  ध्वजा पताका हैं।
                 बल बिबेक दम परहित घोड़े।
                 छमा कृपा समता रजु जोड़े।।
                 ईस भजनु सारथि सुजाना।
                 बिरती चर्म संतोष कृपाना।।
                 दान परसु बुद्धि सक्ति प्रचंडा।
                 बर बिज्ञान कठिन कोदंडा।।
                 अमल अचल मन त्रोन समाना।
                 सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
                 कवच अभेद बिप्र गुरु पूजा।
                 एही सम विजय उपाय ना दूजा।।
                 सखा धर्ममय अस रथ जाकें।
                 जीतन कह न कतहुं रिपु ताकें।।
बल, विवेक, दम (इन्द्रियों को नियंत्रण  में  रखना) और  दूसरों का हित इस रथ के चार घोड़े हैं। क्षमा, दया और समता  रूपी  तीन  रस्सियां  हैं जिनसे इनको रथ  के  साथ  जोड़ा  गया  है। ईश्वर  का भजन इसका समझदार सारथी  है।  वैराग्य  ढाल  है और संतोष तलवार है। दान फरसा और बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है। विशुद्ध विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल और स्थिर मन तरकश के समान है। शम (मन को नियंत्रण में  करना)  यम  (अहिंसा) और नियम आदि इस तरकश के तीर हैं।  विप्र और  गुरु  जनों की सेवा ही अभेद्य कवच है। इसी से विजय मिलती है।  इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है। हे मित्र!जिसके  पास  इस प्रकार का धर्ममय रथ है, उसके लिए जीतने को कहीं  शत्रु  ही नहीं है। अर्थात उसका कोई शत्रु रहता ही नहीं है।
           महाअजय संसार रिपु, जीत सके सोई बीर।
           जाकें अस रथ होई दृढ, सुनहुं सखा मतिधीर।।
राम जी  विभीषण को  कहते हैं  कि  हे  धीरबुद्धि  वाले  सखा सुनो, जिस के पास इस प्रकार  का  रथ  है वो तो  महा  अजय संसार रूपी शत्रु (आवागमन का चक्र)  को  भी  जीत   सकता है। अर्थात रावण तो उसके सामने कुछ भी नहीं।
     इस दर्शन से पता चलता है कि हम व्यर्थ ही वाक  युद्ध  के द्वारा अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने  का   प्रयत्न  करते  रहते   हैं। एक दूसरे के प्रति घृणा, द्वेष आदि करते  हुए  भी अपने  आप को पवित्र और  विशुद्ध  दिखाने  का व्यर्थ  प्रयास  करते  रहते हैं। परंतु जो  करना  चाहिए  वो  नहीं  करते।  हमें  यह  समझ लेना चाहिए कि हमें  केवल  अपने आप  को  ही  ठीक  करना है,  दूसरों   को  नहीं  ऊपर   बताए   गुणों  (शौर्य,  धैर्य,  बल, विवेक, दृढता, सत्य, शील (सदाचार)  दम (इन्द्रिय  नियंत्रण),  दूसरों  का  हित  करना, क्षमा,  दया,  समता,  वैराग्य,  संतोष, दान, विशुद्ध वैज्ञानिक  बुद्धि, निर्मल  और  स्थिर  मन, अहिंसा और गुरु जनों कि सेवा का भाव) को धारण करके अपने अंदर के  राक्षस  को  जीत  लेना  है।  इतने  बड़े  ब्रह्मांड  में  इस  से बड़ा और कोई कार्य नहीं है।

गुरुवार, 9 जनवरी 2020

भजन

            भजन संख्या १. (हरि शरणम्)
 हरि शरणम् , हरि शरणम् , हरि शरणम् , हरि शरणम्।
 हरि शरणम् , हरि शरणम् , हरि शरणम् , हरि शरणम्।।
 प्रभु इतनी कृपा करना, संग संतों का दे देना।
 गुरु चरणों में मन लागे, व सेवा भाव दे देना।।
 हरि शरणम्............
 कृपा करना हरि मुझ पर, कथा में ध्यान हो मेरा।
 करूं किर्तन सदा तेरा, जुबान पे नाम हो तेरा।।
 हरि शरणम्...........
 मुझे वरदान दो कान्हा, तेरे गुण गाए यह वाणी।
 निहारूं रूप को तेरे, बहाऊं आंख से पानी।।
 हरि शरणम्...........
 उचित व्यवहार संयम ज्ञान, और वैराग्य दे देना।
 कभी पर दोष ना देखूं, मुझे संतोष दे देना।।
 हरि शरणम्.............
 जगत में तू दिखे ऐसी, मेरी दृष्टि बना देना।
 सरल छल हीन हो जाऊं, भरोसा तुझ में हो श्यामा।।
 हरि शरणम्.............

        भजन संख्या २. (जय मोहन माधव गिरधारी)
 जय मोहन माधव गिरधारी, केशव मुरलीधर बनवारी।
 जय मोहन माधव गिरधारी, केशव मुरलीधर बनवारी।।
 मन मंदिर में आन विराजो, राधा के संग श्याम।
 धुन वंशी की छेड़ो, मुझको संग नचाओ श्याम।।
 सर्वेश्वर मनमोहन तेरी, सूरत है प्यारी प्यारी।
 जय मोहन माधव गिरधारी..........
 कई जन्मों से भटक रही हूँ पद्मनाभ आ जाओ।
 वीराने मन में मनमोहन आ के रास रचाओ।।
 नयना तक तक हार गए हैं, मैं तेरे आगे हारी।
 जय मोहन माधव गिरधारी..........
 तेरी माया तू ही जाने और ना जाने कोई।
 जो ना तेरी ओर चली वो पकड़ के मस्तक रोई।।
 कृपा तेरी पर है मधुसूदन, निर्भर हैं बातें सारी।
 जय मोहन माधव गिरधारी...........

           भजन संख्या ३. (भज नारायण)
   भज नारायण, भज नारायण, नारायण भज रेे मन तू।
   भज नारायण, भज नारायण, नारायण भज रेे मन तू।।
   अत्याचारी लोगों के जब पाप कर्म बढ़ जाते हैं।
   भले लोग इन लोगों के पापों से जब भय खाते हैं।
   मानवता की रक्षा करने नारायण तब आते हैं।।
   भज नारायण भज नारायण..........
   वराह रूप रसातल से पृथ्वी को बाहर थे लाए।
   मन्वन्तर की रक्षा को थे मत्स्य रूप में हरि आए।
   सागर मंथन को नारायण कच्छप जैसे बन आए।।
   भज नारायण भज नारायण..........
   नृसिंह बन नारायण ने था हिरण्यकशिपु उद्धार किया।
   वामन रूप में देव बचाए बली पर भी उपकार किया।
   परशुराम अवतार में आकर पापियों का संहार किया।।
   भज नारायण भज नारायण..........
   राम चन्द्र जी ने रावण और कुंभकर्ण उद्धार किया।
   स्वयं कृष्ण ने लीलाओं से भक्तों पर उपकार किया।
   पाप मिटाया पृथ्वी से और धर्म का जय जयकार किया।।
   भज नारायण भज नारायण..........

        भजन संख्या ४ (श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी)
    श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
    श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
               बड़ी ही सुंदर छवि है कान्हा,
               हो कैसे वर्णन कोई ना जाना।
               हृदय कमल में मेरे वीराजो,
               हे नाथ नारायण वासुदेव।।
    श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
               गले में वनमला सोहे सुंदर,
               मेघा सा रंग, सुंदर पीताम्बर।
               वक्ष स्थल पर मणि सुहाए,
               हे नाथ नारायण वासुदेव।।
    श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
               कानों में कुण्डल सर पे मुकुट है,
               चित को चुराए टेढ़ी भृकुटी है।
               अद्भुत यह क्या रूप की माधुरी है,
               हे नाथ नारायण वासुदेव।।
     श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।
               चंदन से चर्चित श्री अंग सारा,
               अधरों पे बंसी चित्त का सहारा।
               बंसी बजैया गोपियन का प्यारा,
               हे नाथ नारायण वासुदेव।।
     श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेव।

         भजन संख्या: ५ (यशोमती नंदन राधे श्याम)
     यशोमती नंदन, राधे श्याम, नंद  के  लाला  सुख के धाम।
     यशोमती नंदन, राधे श्याम, नंद के लाला  सुख के  धाम।।
     सर पर सुंदर मुकुट सुहावे, जो भी  देखे  अति सुख  पावे।
     कृष्ण नाम जो मुख से बोले, जीवन में वो कभी ना डोले।।
     देवकी पुत्र कृष्ण भगवान, नंद  के  लाला  सुख  के  धाम।
     यशोमती  नंदन, राधे श्याम, नंद के  लाला सुख के धाम।।
     अधरों  पे बंसी  क्या  सोहे,   रूप  माधुरी  मन  को  मोहे।
     लाखों काम देव भी क्या हैं, बाल कृष्ण की छवि जहां है।।
     गोपिअन के प्रियतम श्रीकांत, नंद के लाला सुख के धाम।
     यशोमती नंदन, राधे श्याम, नंद के लाला  सुख के  धाम।।
     मनमोहन  वासुदेव  सुदर्शन,   नयनम  में  तेरा  ही  दर्शन।
     भक्ति  दे  दो  हे  सर्वेश्वर,    चरणों  में  ले  लो  परमेश्वर।।
     ज्ञान विरक्ति का वरदान,  नंद  के  लाला  सुख  के  धाम।
     यशोमती नंदन, राधे श्याम, नंद के लाला  सुख के  धाम।।
     हृदय कमल में गोविंद आओ, केशव माधव दर्श दिखाओ।
     धुन मुरली की मुझे सुनाओ, राधा के संग  गोविंद आओ।।
     मन में बसो प्रभु आठों याम, नंद के लाला सुख  के  धाम।
     यशोमती नंदन, राधे श्याम, नंद के  लाला सुख के  धाम।।

         भजन संख्या ६. (भज मन सिया राम का नाम)
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।

   भव भय हरने वाले राम, सब सुख करने वाले राम।
   काटें तीन ताप के फंदे, भले बुरे सब उसके बंदे,
   मेरे राम हैं सुख के धाम, भज मन सिया राम का नाम।
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।

   मोहिनी आंखों वाले राम, मुख, कर, पद सब कमल समान।
   लाखों कामदेव भी क्या हैं, राम चन्द्र की छवि जहां है।
   नीर भरे मेघा से श्याम, भज मन सिया राम का नाम।
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।

   सर पर सुंदर मुकुट सुहावे, जो मुख देखे अति सुख पावे।
   राम राम जो मुख से बोले, जीवन में वो कभी ना डोले।
   पार उतारें प्यारे राम, भज मन सिया राम का नाम।
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।

   दीन दुःखी की पीड़ा हरते, दैत्य सदा रघुवर से डरते।
   मन मंदिर में आओ राम, हृदय कमल पर बैठो राम।
   भक्ति का दीज्यो वरदान, भज मन सिया राम का नाम।
   भज मन सिया राम का नाम, अकारण कृपा करें मेरे राम।

बुधवार, 8 जनवरी 2020

गुरु वंदना

प्रथम गुरु जी की वंदना, फिर गणपति का ध्यान।
गुरु शरण बिन ना मिले पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान।
सर्व प्रथम ब्रह्म ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु जी की वंदना करता हूँ। उसके बाद कल्याण करता और विघ्नहर्ता  गणेश  जी  का ध्यान करता हूँ। जब तक मनुष्य  सच्चे  गुरु  की  शरण  ग्रहण नहीं करता तब तक उसे पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान  प्राप्त  नहीं  होता।
ज्ञान हीन पर सतगुरु कृपा कीजिए आन।
निर्मल मन कर दास का दो भक्ति का दान।।
मुझ में बिल्कुल  भी ज्ञान नहीं है।  हे सतगुरु आप आकर  मुझ पर कृपा करें। आप मेरे चित्त को ऐसा निर्मल बना दें कि  उसमें भक्ति का प्रवेश हो जाए।
जय गुरुदेव ज्ञान भंडारी, हरहू नाथ मम संकट भारी।
ज्ञान विहीन मूर्ख मैं प्राणी, शरण तुम्हारी आया स्वामी।।
हे गुरुदेव आप ज्ञान  के  भंडार हैं  और  आप  ही  ज्ञान  प्रदान करने वाले हैं। आप मेरे तीनों तापों से होने वाले संकट दूर करो मैं तो मूर्ख हूं और अपना भला बुरा कुछ नहीं जानता।हे स्वामी आप मुझे अपनी शरण में ले लो।
गुरु बिन ना कोई पार लगावे, अंधा राही धोखा खावे।
गुरु देव हर देव तुम्हीं हो, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तुम्हीं हो।।
जैसे एक अंधे व्यक्ति को रास्ता दिखाई नहीं देता उसी तरह ही  ब्रह्म ज्ञान रूपी आंखें ना होने के कारण मैं  अंधा  मुसाफिर हूँ  जो गुरु के रास्ता दिखाए बिना भव सागर  को  पार  नहीं  कर सकता। मेरे लिए सभी देवता आप में ही हैं। मेरे लिए आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं।
तुम्हीं पिता हो तुम्हीं हो माता, तुम्हीं सखा हो तुम्हीं हो भ्राता।
जगत पिता हो सबके स्वामी, सर्व व्यापक अन्तर्यामी।।
आप ही मेरे पिता, माता, और भ्राता हैं। मैं  आप  में  ही  परम पिता परमात्मा के दर्शन करता हूं। मेरे लिए  आप  ही  परब्रह्म परमेश्वर हैं जो कण कण में व्याप्त हैं। 
हर कोई निस दिन तुम्हें ध्यवे, तुम बिन ईश्वर कोई ना पावे।
वेद, शस्त्र महिमा तुद गावे, महापुरुष सब ध्यान लगावें।।
हे गुरुदेव जिस ईश्वर का सब लोग और बड़े बड़े  महापुरुष  भी नित्य ध्यान करते हैं और जिसकी वेद और शास्त्र  महिमा  गाते हैं उसको आप की कृपा के बिना  पाया  नहीं  का  सकता  इस लिए मैं आप को उसी परमात्मा का स्वरूप मानता हूँ।
गुरु नाम से मन हर्षाए, तन मन सब जागृत हो जाए।
अंतर के पट खुलते जाएं, ज्यों ज्यों गुरु का नाम ध्याएं।।
आप का नाम सुन कर मेरा मन हर्षित हो  जाता  है।  मेरा  तन मन सब जागृत हो जाता है। जो भी आप द्वारा  दिए  नाम  को जैसे जैसे लेता है वैसे वैसे उसके अंतर के पट खुलते जाते हैं।
गुरुदेव की महिमा भारी, गुरुदेव की लीला न्यारी।
कृपा गुरु की जब हो जावे, अवगुण सारे दूर भगावे।।
गुरु की महिमा अपरंपार है। उसकी लीला इतनी  न्यारी  है  कि गुरु अपने शिष्य पर कृपा करके उसके सारे  अवगुण  दूर  कर देता है।
चंचलता मन की हट जावे, ज्ञान ध्यान की दौलत पावे।
संग गुरु का जब हो जावे, आशिर्वाद मिले सुख पावे।।
गुरु के संग से ही शिष्य ज्ञान और ध्यान रूपी दौलत पा लेता है और उसके मन की चंचलता मिट जाती है।  गुरु के  आशिर्वाद से उसे असली सुख की प्राप्ति हो जाती है।
जगत पसारा समझ में आवे, अंतर मन में जोत जगावे। 
गुरु शरण में जो भी जावे, मिटे अंधेरा रौशनी पावे।।
गुरु की शरण ग्रहण  करने  से  शिष्य  के  मन  से  अज्ञान  का अंधकार समाप्त हो जाता है और  ज्ञान  का  नित्य  प्रकाश  हो जाता है जिस से उसे यह पता भी चल जाता है कि सारी  सृष्टि परमात्मा का ही विस्तार है। 
गुरुदेव का ध्यान लगावे, नाम दान गुरुदेव से पावे।
धन संपदा से ध्यान हटावे, हरि नाम की दौलत पावे।।
गुरुदेव से नाम का दान ग्रहण करके जब शिष्य गुरु  और  हरि का ध्यान करता है उसका ध्यान सांसारिक वस्तुओं  से  अपने आप दूर हो जाता है।
ध्यान मग्न संसार भुलावे, संकट मिटे बहुत सुख पावे।।
इष्ट देव साक्षात करावे, हरि नाम से सद्गति पावे।
गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान और ध्यान से ही शिष्य के संकट मिटते हैं, नित्य सुख मिलता है, संसार से ध्यान हट जाता है और अंत में उसे इष्टदेव के दर्शन हो जाने से सद्गति  प्राप्त हो जाती है।
हरि चरणों की करे आरती, हरि चरणों में शीश निवावे। 
ब्रह्म रूप को याद करे, और ब्रह्म रूप ही खुद हो जावे।।
गुरु की कृपा से ही शिष्य इस योग्य हो पाता है कि वो  भगवान की आराधना कर सके, पूजा कर सके उसे याद करता रहे और एक दिन स्वयं भी उसी में मिल जाए।
गुरुदेव कल्याण करे, और गुरु देव ही कष्ट मिटावे।
गुरु देव ही शरण में ले, और गुरुदेव ही पार लगावे।।
यह सब कुछ गुरु कृपा से ही हो सकता है। इसी लिए कहा  है कि प्राणी का कल्याण करने वाला गुरु है, सारे कष्ट दूर  करने वाला और अपनी शरण में लेकर भव सागर से  पार  उतारने वाला भी गुरु ही है।
जो नर मन चित लाए के, करे गुरु का ध्यान।
कृपा करें गुरुदेव जी, संकट कटें तमाम।।
 जो व्यक्ति अपना चित्त गुरु के चरणों में  लगा देता है उस  पर गुरु स्वयं कृपा करते हैं उसे फिर सांसारिक और भवसागर का रास्ता पार करने के कष्टों की कोई चिंता नहीं  रह  जाती।  गुरु स्वयं ही उसको पार कर देते हैं।
                    गुरुदेव जी की आरती
जय जय जय गुरुदेव, स्वामी जय जय जय गुरुदेव।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु,    जय गुरु देव  महेश।।  ॐ जय...
गुरु बिन घोर अंधेरा, गुरु बिन ज्ञान नहीं।
गुरु  शरण  बिन  बंदे,        पावे  मान  नहीं।।  ॐ जय...
कष्ट क्लेश सब मन के, पल में दूर करे।
ज्यों ही शिष्य जुबां पर, गुरुजी का नाम धरे।।  ॐ जय...
तन मन धन सब अर्पण, जो कर देता है।
नाम दान  पाकर  वो,    मोक्ष  पद  लेता  है।।   ॐ जय...
अहम् त्याग कर खुद को, गुरु जी की शरण करे।
गुरु  कृपा  से  वह,       भवसागर  पार  तरे।।   ॐ जय...
गुरु देव जी की आरती, जो कोई नर गावे।
गुरु कृपा  से  वह,    मनवांछित  फल  पावे।।   ॐ जय...