मैं अशिक्षित से शिक्षित हुई, अबला से सबला।
पुरुष के कन्धे से कन्धा मिला,देश का भाग्य बदला।
पुरानी से लेकर नई तक, सब जिम्मेदारियां निभाती हूं।
ऑटो रिक्शा से लेकर, जहाज तक चलाती हूं।
सड़क पे चलते फिर भी, मेरी अस्मत क्यूं लुट जाती है।
उन नर रूपी दैत्यों को, फिर मौत, क्यूं नहीं आती है।
अस्मत लूटी, फूंक दिया, और मार दिया हथियारों से।
लड़की पूछ रही है, सभी समाज के ठेकेदारों से।
आधी आबादी पर सदियों से अत्याचार हो रहा है। स्त्री को दूसरे दर्जे का नागरिक समझ कर और उस की उन्नति में बाधक बन कर यह समाज उसका तो नुकसान कर ही रहा है,दूसरी ओर पूरे समाज को भी पीछे धकेल रहा है। जिस समाज की नारी शिक्षित नहीं वो समाज हमेशा अधूरा ही रहता है। कहते हैं ना कि यदि परिवार की एक बेटी शिक्षित हो जाती है तो एक नहीं बल्कि दो दो परिवारों को शिक्षित कर देती है।
दुख होता है जब आज भी लोग बेटी को अच्छी शिक्षा देने के बजाए उसकी शादी की चिंता अधिक करते हैं। उसकी शिक्षा पर खर्च करने के बजाए उसकी शादी के लिए धन को संभाल संभाल कर रखते हैं। उसको अपने पैरों पर खड़ा होने में सहयोग देने के बजाय उसको पराई अमानत समझ कर एक अनजान परिवार में भेज देने की जल्दी करते हैं। वो छोटी सी परी जिसने आगे बढ़ कर कल्पना चावला, सानिया नेहवाल, सानीया मिर्जा आदि बनना था इसको कम उम्र में ही गृहस्थ की बेड़ियां पहना दी जाती हैं।
यहीं पर बस नहीं उससे भी बड़ा दुख तो इस बात का है कि कई मनहूस प्राणी बेटी को पढ़ाने की बात तो दूर बेटी को पैदा होने से पहले ही उसकी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। ऐसे लोग जिनकी इतनी घटिया और राक्षसी सोच है और जो बेटी को बोझ समझते हैं दरअसल वो स्वयं इस पृथ्वी पर बहुत बड़ा बोझ हैं। उनकी संवेदना मर चुकी है। वो आज तक समझ ही नहीं नहीं पाए कि जिस घर में बेटी पैदा नहीं होती वो घर कितना निष्प्राण प्रतीत होता है। बेटी ही तो घर की असली रौनक होती हैं। यह सब कुछ समझ पाना शायद उनके बस की बात भी नहीं है क्योंकि उनको तो स्वार्थ के आगे कुछ नज़र ही नहीं आता। आज के युग का शायद सब से घृणित अपराध बन गया है भ्रूण हत्या।
रही सही कसर पूरी कर देते हैं नीच सोच रखने वाले वो दरिंदे जो स्त्री को केवल वासना पूर्ति का साधन मान कर सारी मर्यादाओं को लांघ जाते हैं।
वर्तमान सरकार की यह बहुत ही कल्याण कारी योजना, बेटी ' पढ़ाओ बेटी बचाओ' अपने आप में एक अनूठी योजना है जो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी। भारतीय सरकार के द्वारा इस योजना को 22 जनवरी, 2015 को कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करने के लिए और महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया था।
इस योजना का उद्देश्य भ्रूण हत्या को रोकना, कन्या शिशु की रक्षा, शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना, लिंग अनुपात को सही दिशा में बढ़ाना और छोटी आयु में हो रहे विवाहों को रोकना आदि है।
यह बात सही है कि केवल योजनाएं बना देने से बात नहीं बनती। इनको संकल्प पूर्वक लागू करना होता है। और खास करके वो योजनाएं जिनका संबंध लोगों की सोच और उनकी मान्यताओं से हो, उनमें तो और ज्यादा सतर्कता, जिम्मेदारी, कर्मठता और पक्के इरादे की आवश्यकता होती है। मुझे तो पक्का विश्वास है कि सरकार और समाज के लोग पूरी तरह से संकल्प करके यदि इस योजना को सफल बनाने का प्रयास करेंगे तो सफलता का कोई ना कोई मार्ग आवश्य ही मिल जाएगा। कवि ने कहा है कि:
सामने हो जब लक्ष्य हमारे, मन में गर विश्वास भरा हो
कोई शंका हो ना मन में, चित्त हमारा पूर्ण खरा हो
कितना भी मुश्किल हो चाहे, करने को जब तुल जाता है
इच्छा जब संकल्प बने तो, एक झरोखा खुल जाता है
पुरुष के कन्धे से कन्धा मिला,देश का भाग्य बदला।
पुरानी से लेकर नई तक, सब जिम्मेदारियां निभाती हूं।
ऑटो रिक्शा से लेकर, जहाज तक चलाती हूं।
सड़क पे चलते फिर भी, मेरी अस्मत क्यूं लुट जाती है।
उन नर रूपी दैत्यों को, फिर मौत, क्यूं नहीं आती है।
अस्मत लूटी, फूंक दिया, और मार दिया हथियारों से।
लड़की पूछ रही है, सभी समाज के ठेकेदारों से।
आधी आबादी पर सदियों से अत्याचार हो रहा है। स्त्री को दूसरे दर्जे का नागरिक समझ कर और उस की उन्नति में बाधक बन कर यह समाज उसका तो नुकसान कर ही रहा है,दूसरी ओर पूरे समाज को भी पीछे धकेल रहा है। जिस समाज की नारी शिक्षित नहीं वो समाज हमेशा अधूरा ही रहता है। कहते हैं ना कि यदि परिवार की एक बेटी शिक्षित हो जाती है तो एक नहीं बल्कि दो दो परिवारों को शिक्षित कर देती है।
दुख होता है जब आज भी लोग बेटी को अच्छी शिक्षा देने के बजाए उसकी शादी की चिंता अधिक करते हैं। उसकी शिक्षा पर खर्च करने के बजाए उसकी शादी के लिए धन को संभाल संभाल कर रखते हैं। उसको अपने पैरों पर खड़ा होने में सहयोग देने के बजाय उसको पराई अमानत समझ कर एक अनजान परिवार में भेज देने की जल्दी करते हैं। वो छोटी सी परी जिसने आगे बढ़ कर कल्पना चावला, सानिया नेहवाल, सानीया मिर्जा आदि बनना था इसको कम उम्र में ही गृहस्थ की बेड़ियां पहना दी जाती हैं।
यहीं पर बस नहीं उससे भी बड़ा दुख तो इस बात का है कि कई मनहूस प्राणी बेटी को पढ़ाने की बात तो दूर बेटी को पैदा होने से पहले ही उसकी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। ऐसे लोग जिनकी इतनी घटिया और राक्षसी सोच है और जो बेटी को बोझ समझते हैं दरअसल वो स्वयं इस पृथ्वी पर बहुत बड़ा बोझ हैं। उनकी संवेदना मर चुकी है। वो आज तक समझ ही नहीं नहीं पाए कि जिस घर में बेटी पैदा नहीं होती वो घर कितना निष्प्राण प्रतीत होता है। बेटी ही तो घर की असली रौनक होती हैं। यह सब कुछ समझ पाना शायद उनके बस की बात भी नहीं है क्योंकि उनको तो स्वार्थ के आगे कुछ नज़र ही नहीं आता। आज के युग का शायद सब से घृणित अपराध बन गया है भ्रूण हत्या।
रही सही कसर पूरी कर देते हैं नीच सोच रखने वाले वो दरिंदे जो स्त्री को केवल वासना पूर्ति का साधन मान कर सारी मर्यादाओं को लांघ जाते हैं।
वर्तमान सरकार की यह बहुत ही कल्याण कारी योजना, बेटी ' पढ़ाओ बेटी बचाओ' अपने आप में एक अनूठी योजना है जो बहुत पहले आ जानी चाहिए थी। भारतीय सरकार के द्वारा इस योजना को 22 जनवरी, 2015 को कन्या शिशु के लिए जागरूकता का निर्माण करने के लिए और महिला कल्याण में सुधार करने के लिए शुरू किया गया था।
इस योजना का उद्देश्य भ्रूण हत्या को रोकना, कन्या शिशु की रक्षा, शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना, लिंग अनुपात को सही दिशा में बढ़ाना और छोटी आयु में हो रहे विवाहों को रोकना आदि है।
यह बात सही है कि केवल योजनाएं बना देने से बात नहीं बनती। इनको संकल्प पूर्वक लागू करना होता है। और खास करके वो योजनाएं जिनका संबंध लोगों की सोच और उनकी मान्यताओं से हो, उनमें तो और ज्यादा सतर्कता, जिम्मेदारी, कर्मठता और पक्के इरादे की आवश्यकता होती है। मुझे तो पक्का विश्वास है कि सरकार और समाज के लोग पूरी तरह से संकल्प करके यदि इस योजना को सफल बनाने का प्रयास करेंगे तो सफलता का कोई ना कोई मार्ग आवश्य ही मिल जाएगा। कवि ने कहा है कि:
सामने हो जब लक्ष्य हमारे, मन में गर विश्वास भरा हो
कोई शंका हो ना मन में, चित्त हमारा पूर्ण खरा हो
कितना भी मुश्किल हो चाहे, करने को जब तुल जाता है
इच्छा जब संकल्प बने तो, एक झरोखा खुल जाता है