बुधवार, 8 जनवरी 2020

गुरु वंदना

प्रथम गुरु जी की वंदना, फिर गणपति का ध्यान।
गुरु शरण बिन ना मिले पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान।
सर्व प्रथम ब्रह्म ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु जी की वंदना करता हूँ। उसके बाद कल्याण करता और विघ्नहर्ता  गणेश  जी  का ध्यान करता हूँ। जब तक मनुष्य  सच्चे  गुरु  की  शरण  ग्रहण नहीं करता तब तक उसे पूर्ण ब्रह्म का ज्ञान  प्राप्त  नहीं  होता।
ज्ञान हीन पर सतगुरु कृपा कीजिए आन।
निर्मल मन कर दास का दो भक्ति का दान।।
मुझ में बिल्कुल  भी ज्ञान नहीं है।  हे सतगुरु आप आकर  मुझ पर कृपा करें। आप मेरे चित्त को ऐसा निर्मल बना दें कि  उसमें भक्ति का प्रवेश हो जाए।
जय गुरुदेव ज्ञान भंडारी, हरहू नाथ मम संकट भारी।
ज्ञान विहीन मूर्ख मैं प्राणी, शरण तुम्हारी आया स्वामी।।
हे गुरुदेव आप ज्ञान  के  भंडार हैं  और  आप  ही  ज्ञान  प्रदान करने वाले हैं। आप मेरे तीनों तापों से होने वाले संकट दूर करो मैं तो मूर्ख हूं और अपना भला बुरा कुछ नहीं जानता।हे स्वामी आप मुझे अपनी शरण में ले लो।
गुरु बिन ना कोई पार लगावे, अंधा राही धोखा खावे।
गुरु देव हर देव तुम्हीं हो, ब्रह्मा, विष्णु, महेश तुम्हीं हो।।
जैसे एक अंधे व्यक्ति को रास्ता दिखाई नहीं देता उसी तरह ही  ब्रह्म ज्ञान रूपी आंखें ना होने के कारण मैं  अंधा  मुसाफिर हूँ  जो गुरु के रास्ता दिखाए बिना भव सागर  को  पार  नहीं  कर सकता। मेरे लिए सभी देवता आप में ही हैं। मेरे लिए आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं।
तुम्हीं पिता हो तुम्हीं हो माता, तुम्हीं सखा हो तुम्हीं हो भ्राता।
जगत पिता हो सबके स्वामी, सर्व व्यापक अन्तर्यामी।।
आप ही मेरे पिता, माता, और भ्राता हैं। मैं  आप  में  ही  परम पिता परमात्मा के दर्शन करता हूं। मेरे लिए  आप  ही  परब्रह्म परमेश्वर हैं जो कण कण में व्याप्त हैं। 
हर कोई निस दिन तुम्हें ध्यवे, तुम बिन ईश्वर कोई ना पावे।
वेद, शस्त्र महिमा तुद गावे, महापुरुष सब ध्यान लगावें।।
हे गुरुदेव जिस ईश्वर का सब लोग और बड़े बड़े  महापुरुष  भी नित्य ध्यान करते हैं और जिसकी वेद और शास्त्र  महिमा  गाते हैं उसको आप की कृपा के बिना  पाया  नहीं  का  सकता  इस लिए मैं आप को उसी परमात्मा का स्वरूप मानता हूँ।
गुरु नाम से मन हर्षाए, तन मन सब जागृत हो जाए।
अंतर के पट खुलते जाएं, ज्यों ज्यों गुरु का नाम ध्याएं।।
आप का नाम सुन कर मेरा मन हर्षित हो  जाता  है।  मेरा  तन मन सब जागृत हो जाता है। जो भी आप द्वारा  दिए  नाम  को जैसे जैसे लेता है वैसे वैसे उसके अंतर के पट खुलते जाते हैं।
गुरुदेव की महिमा भारी, गुरुदेव की लीला न्यारी।
कृपा गुरु की जब हो जावे, अवगुण सारे दूर भगावे।।
गुरु की महिमा अपरंपार है। उसकी लीला इतनी  न्यारी  है  कि गुरु अपने शिष्य पर कृपा करके उसके सारे  अवगुण  दूर  कर देता है।
चंचलता मन की हट जावे, ज्ञान ध्यान की दौलत पावे।
संग गुरु का जब हो जावे, आशिर्वाद मिले सुख पावे।।
गुरु के संग से ही शिष्य ज्ञान और ध्यान रूपी दौलत पा लेता है और उसके मन की चंचलता मिट जाती है।  गुरु के  आशिर्वाद से उसे असली सुख की प्राप्ति हो जाती है।
जगत पसारा समझ में आवे, अंतर मन में जोत जगावे। 
गुरु शरण में जो भी जावे, मिटे अंधेरा रौशनी पावे।।
गुरु की शरण ग्रहण  करने  से  शिष्य  के  मन  से  अज्ञान  का अंधकार समाप्त हो जाता है और  ज्ञान  का  नित्य  प्रकाश  हो जाता है जिस से उसे यह पता भी चल जाता है कि सारी  सृष्टि परमात्मा का ही विस्तार है। 
गुरुदेव का ध्यान लगावे, नाम दान गुरुदेव से पावे।
धन संपदा से ध्यान हटावे, हरि नाम की दौलत पावे।।
गुरुदेव से नाम का दान ग्रहण करके जब शिष्य गुरु  और  हरि का ध्यान करता है उसका ध्यान सांसारिक वस्तुओं  से  अपने आप दूर हो जाता है।
ध्यान मग्न संसार भुलावे, संकट मिटे बहुत सुख पावे।।
इष्ट देव साक्षात करावे, हरि नाम से सद्गति पावे।
गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान और ध्यान से ही शिष्य के संकट मिटते हैं, नित्य सुख मिलता है, संसार से ध्यान हट जाता है और अंत में उसे इष्टदेव के दर्शन हो जाने से सद्गति  प्राप्त हो जाती है।
हरि चरणों की करे आरती, हरि चरणों में शीश निवावे। 
ब्रह्म रूप को याद करे, और ब्रह्म रूप ही खुद हो जावे।।
गुरु की कृपा से ही शिष्य इस योग्य हो पाता है कि वो  भगवान की आराधना कर सके, पूजा कर सके उसे याद करता रहे और एक दिन स्वयं भी उसी में मिल जाए।
गुरुदेव कल्याण करे, और गुरु देव ही कष्ट मिटावे।
गुरु देव ही शरण में ले, और गुरुदेव ही पार लगावे।।
यह सब कुछ गुरु कृपा से ही हो सकता है। इसी लिए कहा  है कि प्राणी का कल्याण करने वाला गुरु है, सारे कष्ट दूर  करने वाला और अपनी शरण में लेकर भव सागर से  पार  उतारने वाला भी गुरु ही है।
जो नर मन चित लाए के, करे गुरु का ध्यान।
कृपा करें गुरुदेव जी, संकट कटें तमाम।।
 जो व्यक्ति अपना चित्त गुरु के चरणों में  लगा देता है उस  पर गुरु स्वयं कृपा करते हैं उसे फिर सांसारिक और भवसागर का रास्ता पार करने के कष्टों की कोई चिंता नहीं  रह  जाती।  गुरु स्वयं ही उसको पार कर देते हैं।
                    गुरुदेव जी की आरती
जय जय जय गुरुदेव, स्वामी जय जय जय गुरुदेव।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु,    जय गुरु देव  महेश।।  ॐ जय...
गुरु बिन घोर अंधेरा, गुरु बिन ज्ञान नहीं।
गुरु  शरण  बिन  बंदे,        पावे  मान  नहीं।।  ॐ जय...
कष्ट क्लेश सब मन के, पल में दूर करे।
ज्यों ही शिष्य जुबां पर, गुरुजी का नाम धरे।।  ॐ जय...
तन मन धन सब अर्पण, जो कर देता है।
नाम दान  पाकर  वो,    मोक्ष  पद  लेता  है।।   ॐ जय...
अहम् त्याग कर खुद को, गुरु जी की शरण करे।
गुरु  कृपा  से  वह,       भवसागर  पार  तरे।।   ॐ जय...
गुरु देव जी की आरती, जो कोई नर गावे।
गुरु कृपा  से  वह,    मनवांछित  फल  पावे।।   ॐ जय...




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