ब्रह्मा जी ने नारद जी को शिव कथा सुनाते हुए आगे कहा कि पूर्व काल में भगवान शिव निर्गुण, निर्विकल्प, निराकार, शक्तिरहित, चिन्मय तथा सत् और असत् से विलक्षण स्वरूप में प्रतिष्ठित थे। फिर वे ही प्रभु सगुण ओर शक्तिमान् होकर विशिष्ट रूप धारण करके स्थित हुए। उनके साथ भगवती उमा विराजमान थीं।
उनके बाएं अंग से भगवान विष्णु, दाएं अंग से ब्रह्मा एवं हृदय से रूद्रदेव प्रकट हुए। यही तीनों त्रिदेव कहलाए। ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना, विष्णु जी ने सृष्टि पालन तथा रूद्रदेव जी ने संहार का कार्य सँभाल लिया।
इस तरह भगवान शिव ही तीन रूप धारण करके स्थित हुए। ब्रह्मा जी ने उन्हीं की आराधना करके सभी प्रकार की सृष्टि का कार्य आरम्भ कर दिया। ब्रह्मा जी ने प्रजा पतियों, ऋषियों, देवताओं, असुरों एवं मानव आदि सभी प्रकार की सृष्टि बनाई।
कामदेव प्राकट्य
इसी तरह ब्रह्मा जी के मन से एक बहुत मनोहर पुरुष प्रकट हुआ। वह अत्यंत सुंदर और मनमोहक था। जब उसने ब्रह्मा जी से अपने बारे में पूछा कि वह कौन सा कार्य करे, तो ब्रह्मा जी ने उसे कहा कि वो अपने इसी स्वरूप से तथा फूल से बने हुए पांच बाणों से स्त्रियों और पुरुषों को मोहित करते हुए सृष्टि के सनातन कार्य को चलाए। यह भी कहा कि समस्त चराचर त्रिभुवन में देवता आदि कोई भी जीव उसका तिरस्कार करने में समर्थ नहीं होगा। समस्त प्राणियों का मन उसके पुष्पमय बाण का सदा अनायास ही अद्भुत लक्ष्य बन जाएगा और वो उन्हें निरंतर मदमत्त किए रहेगा। उस पुरुष का नामकरण ब्रह्मा जी के मरीचि आदि पुत्रों ने किया।
नामकरण तथा विवाह
ऋषियों ने उसका नाम मन को मथने वाला होने के कारण, ' मन्मथ', काम रूप होने के कारण, ' काम ', लोगों को मादमत्त बना देने के कारण ' मदन ', बड़े दर्प से उत्पन्न होने के कारण दर्पक तथा सदर्प होने के कारण कंदर्प रक्खा और उसे सर्वव्यापी होने का आशीर्वाद दिया। तथा उसका सभी स्थानों पर अधिकार होने की बात भी कही।
तब प्रजापति दक्ष ने अपने ही शरीर से उत्पन्न करके अपनी पुत्री रति का विवाह काम देव से कर दिया।
ॐ नमः शिवाय
Very nice
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