सोमवार, 2 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवत महापुराण, लेख संख्या-18 (अजामिल की कहानी)

       परीक्षित जी ने श्री शुकदेव  जी से पूछा कि ऐसा कौन सा उपाय है,  जिसके  करने से मनुष्य अपने द्वारा किए गए अधर्म के कारण  मिलने वाली  भयंकर  यातनाओं  से अपने आप को बचा सके। इसके लिए क्या प्रायश्चित करना चाहिए?
       श्री शुकदेव जी ने कहा:- " वस्तुत: कर्म  के  द्वारा ही कर्म का निर्बीज नाश नहीं होता क्योंकि कर्म का अधिकारी अज्ञानी है। अज्ञान  रहते  पाप  वासनाएं  सर्वथा मिट नहीं सकतीं। इस लिए सच्चा प्रायश्चित तो तत्व ज्ञान ही है। धर्मज्ञ और श्रद्धावान धीर पुरुष  तपस्या,  ब्रह्मचर्य,  इन्द्रिय दमन,  मन की  स्थिरता, दान, सत्य, बाहर-भीतर की पवित्रता  तथा  यम एवं नियम इन नौ साधनों से  मन वाणी और शरीर  के द्वारा किए गए  बड़े से बड़े पापों  को भी  नष्ट कर देते हैं।  भगवान की शरण  में रहने वाले  भक्त जन  जो विरले ही होते हैं  केवल भक्ति और आत्म समर्पण से ही उसी प्रकार भस्म कर देते हैं जैसे सूर्य कुहरे को।
       हे परीक्षित,  इस  विषय  में  महात्मा  लोग  एक  प्राचीन इतिहास कहा करते हैं। ध्यान से सुनो:-
                       अजामिल की कहानी
       कान्य कुब्ज  नगर (कन्नौज)  में  एक  अजामिल नाम का शास्त्रज्ञ  ब्राह्मण  रहता था। शील, सदाचार और सद्गुणों का तो वह ख़ज़ाना  ही  था।  ब्रह्मचारी,  विनई,  जितेंद्रिय, सत्य निष्ठ, मंत्रवेता  और  पवित्र  भी था।  उसने गुरु, अग्नि, अतिथि और वृद्ध जनों  की बड़ी ही सेवा  की  थी। अहंकार तो उसमें था ही नहीं।  वह  सबका  हितू,  कम  बोलने वाला,  दूसरों में दोष ना ढूंडनें वाला एवं उपकार करने वाला था।
                    अजामिल का नैतिक पतन
       एक दिन पिता के  आदेशानुसार  वह  वन  में होकर लौट रहा था। रास्ते में  उसने  एक  निर्लज्ज पुरुष को एक वैश्या के साथ विहार  करते  देख  मोहित  होकर   काम के  वशीभूत हो गया। वहीं अजामिल सब धर्म कर्म छोड़ केवल उसी का चिंतन करता। उसने प्रति दिन उसके पास जाना शुरू कर दिया। यहां तक कि अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया  और अपने पिता की सारी संपत्ति भी उस वैश्या पर ही खर्च कर डाली। जब संपत्ति सारी समाप्त हो गई तो चोरी डकैती शुरू  कर  दी।  पिता  की मृत्यु के बाद तो वो  उसे  अपने  घर  पर ही ले आया। उसी से उसके 10 पुत्र भी हुए।
                 अजामिल पर एक साधु की कृपा
       जब अंतिम पुत्र होने वाला  था  तो  एक दिन  उसके  घर एक  साधु  पुरुष  रात  ठहरे। अजामिल  और उसकी पत्नी  ने उनकी बहुत सेवा की। साधु जाते जाते उस पर एक कृपा  कर गए। उसको  कह गए कि आने वाली संतान का नाम नारायण ही रखना। साधु की बात को  आशिर्वाद  मान  कर  अजामिल और उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया।
                 यमदूतों और पार्षदों की बातचीत
       जब  अजामिल  की  वृद्ध  अवस्था  हो गई और मृत्यु की घड़ी पास आ गई तो एक दिन बहुत ही भयावने यमदूत उसको लेने के लिए आ गए। उनको देख  कर  वह  इतना डर गया कि घबरा कर पूरे ज़ोर से उसने अपने सबसे छोटे पुत्र नारायण को आवाज़ लगाई। नारायण! नारायण! जब उसके प्राणों को  बल पूर्वक  यमदूत  खींच  ही रहे  थे  तो  उसी समय श्री हरी के दो पार्षद भी  वहां  पहुंच  गए  और  उन्होंने  यमदूतों  को  उसका सूक्षम शरीर निकालने से रोक दिया। यमदूतों ने कहा कि," तुम कौन हो और हमें अपना  कार्य  करने से  क्यों  रोक  रहे  हो?"
इस पर  पार्षदों  ने  अपना  परिचय  देते  हुए  बताया  कि  हम भगवान विष्णु  के  दूत हैं और साथ ही पूछा कि आप हमें यह बताओ कि  " दण्ड  का  पात्र  कौन है?  क्या  सभी पापाचारी दंडनीय होते हैं ?" यमदूतों ने उत्तर दिया कि जितना पाप कोई करता है उसको उसका बनता दण्ड दिया जाता है।  यह पापी है तो दण्ड तो इसे मिलेगा ही। भगवान यमराज इसे दण्ड देंगे।
       पार्षदों ने कहा कि  इसने अपने पापों का  प्रायश्चित  कर लिया है। क्योंकि इसने विवश होकर ही सही, भगवान के परम कल्याण मय  मोक्षप्रद नाम का उच्चारण तो किया है। पाप की निवृत्ती  के  लिए तो  भगवान के नाम का एक अंश ही पर्याप्त है। भगवान का नाम अपना फल देकर ही रहता है।
                        अजामिल का उद्धार
       यह सुनकर यमदूत वहां से चले गए। अजामिल ने  स्वस्थ होने के बाद उस सत्संग के  प्रभाव से  तत्व ज्ञान  प्राप्त  करके प्रायश्चित आरंभ किया। योग के द्वारा  इन्द्रियों  को  विषयों  से हटाकर भीतर लीन कर लिया। मन और बुद्धि  को  मिला  कर भगवान परब्रह्म में  जोड़  दिया।  इस तरह  अंत में  वह  बैकुंठ धाम को प्राप्त हुआ।
       इसी लिए  कहते  हैं  कि  भगवान के  नाम  से ही  मनुष्य परमपद को प्राप्त कर लेता है। इस से बड़ा और कुछ भी  नहीं है। प्रायश्चित का भी यही  सबसे उत्तम  साधन है।  पर  इसका अर्थ यह  कदापि  नहीं लेना  चाहिए  कि  पाप  करते  रहें  यह समझ कर  कि  बाद  में  प्रयाष्चित  कर लेंगे। क्योंकि जिसको सच्चा पश्चाताप हो जाता है वह दोबारा कभी पाप नहीं करता।
                        जय श्रीकृष्ण जी की

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