रविवार, 8 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवत महापुराण लेख संख्या -21(वामन अवतार)

            दैत्यराज बली का अमरावती पर अधिकार
    समुद्र मंथन के बाद देवताओं और दैत्यों में घोर संग्राम हुआ
भगवान विष्णु जी की  सहायता  से देवता विजई रहे। बलि जो कि  मर  चुका  था,  उसको  उसके  गुरु  शुक्राचार्य  ने  फिर से जीवित कर दिया। बलि ने अपनी सारी सम्पत्ति  अपने गुरु को अर्पण कर दी। सारे भृगु वंशी ब्राह्मणों की वो स्वयं  सेवा करते थे। उन ब्राह्मणों ने प्रसन्न  होकर बलि से विश्वजीत नामक यज्ञ करवाया। उस  यज्ञ  से  बलि  को  एक  सोने से मढ़ा हुआ रथ, एक ध्वजा, एक धनुष, कभी खाली ना होने वाला तरकश और एक दिव्य कवच प्राप्त हुआ। शुक्राचार्य ने उसे एक शंख प्रदान किया। बलि ने फिर एक बार आसुरी सेना को साथ लेकर  इंद्र पुरी पर चढ़ाई कर दी।
    देवता अपने गुरु बृहस्पति जी के पास गए और प्रश्न  किया कि बलि में इतना तेज कहां से आ गया।  बृहस्पति जी ने उन्हें  बताया कि बलि के द्वारा करवाए गए विश्वजीत नामक  यज्ञ से ही उसे  यह  सारी  शक्तियां  प्राप्त हुई हैं। अब तुम  अमरावती छोड़ कर  कहीं  छिप  जाएं  और सही समय की  प्रतीक्षा करें, क्योंकि इस  समय  सिवाए   सर्वशक्तिमान  भगवान के उसके सामने कोई और ठहर नहीं सकता है।
    देवताओं ने ऐसा ही किया और बलि ने बड़ी ही आसानी से तीनों  लोकों पर  अधिकार  कर  लिया।  इस तरह उसने तीनों लोकों  की  राज्य  लक्ष्मी  का  बड़ी उदारता से उपभोग करना शुरू कर दिया।
                   दिती को भगवान का वरदान
    महर्षि कश्यप जी  की  दो पत्नियां थीं, दिती  और अदिति। राक्षस दिती  की और देवता अदिति की  संतान थे।  अदिति ने देवताओं के  उत्थान के  लिए  कश्यप जी  के  कहने पर विधि पूर्वक पयोवृत किया। इस पर प्रसन्न होकर  भगवान ने अदिति को  दर्शन  दिए  और  कहा  कि  तूने  अपने पुत्रों की रक्षा हेतु पायोवृत से मेरी पूजा एवं स्तुति की है अत: मैं तुम्हारे पुत्र रूप में अवतार  लेकर  तुम्हारे  पुत्रों की रक्षा करूंगा।  ऐसा कहकर भगवान अंतर्धान हो गए।
                     भगवान वामन का प्राकट्य
    समय आने  पर  भगवान  अदिति के गर्भ से प्रकट हुए और माता को आनंदित  किया। भगवान ने  देखते ही  देखते  वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर लिया।
              भगवान का राजा बलि के पास जाना 
उस समय बलि सौवां यज्ञ  करने  जा  रहे  थे।  वामन  भगवान वहां  यज्ञशाला में पहुंच  गए। वो स्थान नर्मदा नदी के  तट  पर स्थित है  जिसका  नाम है भृगु कच्छ। वामन भगवान  के  हाथ में  छत्र और जल  से  भरा  हुआ  कमंडल, कमर  में  मूंज  की मेखला, गले  में  यज्ञोपवीत, बगल  में  मृगचर्म  और  सिर  पर जटाएं थीं।
                         तीन पग भूमि मांगना
    बलि ने उन्हें उत्तम आसन दिया, पांव पखारे और चरणामृत लेने के बाद बलि ने कहा," हे  विप्र जो मांगना  चाहते हो  मांग लीजिए। मैं आपकी हर तरह की मांग पूरी करने में सामर्थ हूँ।" वामन भगवान ने  कहा कि याचक को केवल इतना ही मांगना चाहिए जितनी  उसको आवश्यकता हो।  इस  लिए मैं  आपसे केवल तीन  पग भूमि  ही  मांगता हूं।  आप अपने हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि का संकल्प करके मुझे  दान कर दीजिए। जैसे ही बलि संकल्प करने लगे उसी समय उनके गुरु शुक्राचर्य भी वहां  पहुंच गए।  उन्होंने  उसे ऐसे करने से रोक दिया और कहा कि तुम यह भूल कर रहे हो। यह कोई साधारण विप्र नहीं हैं। यह तो साक्षात भगवान् विष्णु हैं जो तुम्हारा सब कुछ छीन कर देवताओं  को देने के लिए ही यहां  आए हैं। बलि ने अपने गुरु  की बात सुन  कर कहा कि मैं  अपने द्वार  से  किसी  भी याचक को खाली हाथ नहीं भेज सकता। और यदि यह विष्णु जी भी हैं, तो भी इनको इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तो मेरा सौभाग्य है कि स्वयं  भगवान मेरे द्वारे  पर याचक बन कर पधारे हैं। इसके इलावा यदि यह चाहें तो  वैसे भी मेरा सारा वैभव मुझसे छीन लेने की सामर्थ्य रखते हैं। इस लिए मैं अपना वचन पूरा करूंगा।
                   शुक्राचार्य द्वारा बलि को शाप
                  भगवान द्वारा बलि को वरदान
    इतना सुनते ही शुक्राचार्य ने बलि  को  श्राप दिया कि उसने अपने गुरु का कहना नहीं  माना है इस  लिए वह  शीघ्र ही  श्री हीन हो जावे। राजा बलि ने श्राप को सहर्ष स्वीकार किया और वामन जी को तीन पग भूमि संकल्प करके दे दी और कहा कि वो तीन पग भूमि अपने पगों से माप लें। अब वामन भगवान ने अपने शरीर को बढ़ाना शुरू कर दिया।  इतना  ज्यादा  बढ़ाया कि उन्होंने अपने दो पग में ही तीनों  लोक माप लिए। भगवान ने बलि से कहा  कि हे बलि बताओ  अब मैं अपना तीसरा पग कहां रक्खूं।  कोई स्थान शेष  नहीं रहा। इस लिए  तुम  अपना संकल्प पूरा नहीं कर सकते। अब तुम्हें नरक में  जाना  पढ़ेगा। बलि ने भगवान की  स्तुति करते  हुए  कहा  कि  भगवन्  अब आप  कृपया   तीसरा  पग  मेरे सिर  पर रख दीजिए। भगवान प्रसन्न हुए उन्होंने तीसरे पग  से  बलि  के  सिर  को स्पर्श करते हुए कहा कि हे बलि मैं जिस  पर  कृपा करता हूं  पहले उसकी संपत्ति को  हर  लेता हूं। अब  मैं तुम्हे  वरदान  देता हूँ कि  तुम अगले सावर्णी मन्वन्तर के इन्द्र होंगे। तब तक तुम सूतल लोक में जाओ जिस लोक की देवता भी कामना करते हैं।
                       जय श्रीकृष्ण जी की
    

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