मत्स्य अवतार कथा
पिछले कल्प के अंत में ब्रह्मा जी के सो जाने पर जो ब्राह्म नामक नैमितक प्रलय होना था, उससे पहले जब ब्रह्मा जी को नींद आ रही थी, उसी समय हयग्रीव नामक दैत्य ने अपने योग बल से वेदों को ब्रह्मा जी से चुरा लिया था। श्री हरि ने यह जान लिया और इस संकट के निवारण हेतु एक मछली के रूप में अवतार ग्रहण किया।
उस समय सत्य व्रत नाम के राज ऋषि केवल जल पीकर तपस्या कर रहे थे। यह वही सत्यव्रत थे जो अब वर्तमान कल्प में श्राद्ध देव नाम से वैवत्सव मन्वन्तर के मनु बने हैं।
एक दिन सत्य व्रत कृतमाला नदी से जल लेकर तर्पण कर रहे थे कि उसी समय उनकी अंजलि के जल में एक छोटी सी मछली आ गई। द्रविड़ देश के राजा सत्यव्रत ने अपनी अंजलि के जल के साथ ही फिर से उसे पानी में डाल दिया। तब उस मछली ने बड़ी करुणा के साथ कहा, "राजन आप बड़े दयालु हैं। बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। इस लिए कृपया मुझे जल में ना छोड़ें। दयालु सत्यव्रत ने दया करके मछली को कमंडल में डाल लिया और अपने साथ आश्रम ले गए। थोड़ी ही देर के बाद मछली ने कहा कि कमंडल में मुझे कष्ट हो रहा है। इस लिए कृपया आप मेरे लिए कोई बड़ा स्थान निश्चित कीजिए। सत्यव्रत ने उसको मटके में डाल दिया। फिर थोड़ी देर में और बड़ी हो गई तो उसके लिए एक सरोवर बनवा दिया गया। फिर और बड़ा सरोवर बनाया गया परंतु मछली का आकार बढ़ता ही जा रहा था। अंत में इतना बड़ा आकार हो गया कि सत्यव्रत ने उसे फिर से समुद्र में छोड़ दिया। मछली ने जब फिर से कहा कि राजर्षी मुझे समुद्र में मत छोड़ो तो सत्यव्रत को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ। वो मोह मुग्ध हो गए। उन्होंने पूछा कि आप कौन हैं ? कहीं आप श्री हरी तो नहीं ? यदि आप श्री हरी हैं तो आप ने यह शरीर क्यों धारण किया है ?
भगवान ने कहा सत्यव्रत तुमने बिल्कुल सही पहचाना है। आज से सातवें दिन भूर्लोक आदि तीनों लोक समुद्र में डूब जाएंगे। जब यह डूबने लगेंगे, उस समय तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आएगी तब तुम सभी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर और बीजों को साथ लेकर सप्त ऋषियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। लहराते सागर में अंधेरा होगा। प्रचण्ड आंधी से नाव डगमगाने लगेगी। तब मैं इसी रूप में आऊंगा। तुम वासुकी नाग से नाव को मेरे सींग के साथ बांध देना। तब सत्यव्रत ने भगवान की स्तुति की और उनसे तत्व ज्ञान प्राप्त किया।
सही समय आने पर सब कुछ वैसे ही घटित हुआ जैसे भगवान द्वारा बताया गया था। उसके बाद प्रलय काल आरंभ हो गया। जब प्रलय काल समाप्त हुआ तो भगवान ने अवतार लेकर असुर हय ग्रीव को मार कर उससे वेद छीन लिए और ब्रह्मा जी को दे दिए।
भगवान परशुराम अवतार कथा
भगवान सदा पृथ्वी पर संतुलन बना के रखते हैं। उस समय के शासक बहुत ही अत्याचारी और अधर्मी हो चुके थे। उनमें से सबसे अधिक अत्याचारी राजा था सहस्त्रबाहु। वह है हय वंश का अधिपति था। उसका असली नाम अर्जुन था। दत्तात्रेय जी से उसने सहस्र बाहों का वरदान पाया था। इतनी शक्ति पाकर वह बहुत अभिमानी हो गया था। उस जैसे अभिमानी राजाओं को समाप्त करने के लिए ही भगवान विष्णु जी ने परशुराम जी के रूप में अंशावतार ग्रहण किया।
भगवान परशुराम जी ने महर्षि जमदग्नि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। बचपन में उनका नाम राम था। भगवान शिव से शिक्षा ग्रहण की। शिवजी से परसा प्राप्त किया। भगवान शिव ने ही उन्हें सबसे पहले परशुराम नाम दिया था।
सहस्त्रबाहु (अर्जुन) इतना बलशाली था कि एक बार तो उसने रावण को भी कैद कर लिया था। बाद में उसको ऋषि पुलस्त्य जी ने स्वतंत्र करवाया था। अभिमानी होने के साथ साथ वह ऋषि मुनियों पर भी अत्याचार करता था। एक बार वह ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा तो वहां से कामधेनु गाए को जबरदस्ती अपने साथ ले गया। उसके दस हज़ार पुत्र भी थे।भगवान परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। उस समय उसके सारे पुत्र भाग गए। परंतु बाद में एक दिन उन्होंने अवसर मिलने पर जमदग्नि का सिर काट दिया। परशुराम जी ने इसका बदला लिया और उन सभी को मार दिया। बाद में यज्ञ के द्वारा अपने पिता जमदग्नि को फिर से जीवित किया जो कि वर्तमान में सातवें सप्तऋषि भी बने हैं।
कहते हैं राजाओं के अत्याचारों के कारण परशुराम जी ने पृथ्वी को कई बार ऐसे राजाओं से मुक्त किया। जब भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ और उन्होंने मिथिला में धनुष भंग किया, उसी समय परशुराम जी ने उन्हें पहचाना कि विष्णु जी का पूर्ण अवतार हो चुका है। यह जानकर वे तपस्या करने के लिए चले गए।
जय श्री कृष्ण जी की
पिछले कल्प के अंत में ब्रह्मा जी के सो जाने पर जो ब्राह्म नामक नैमितक प्रलय होना था, उससे पहले जब ब्रह्मा जी को नींद आ रही थी, उसी समय हयग्रीव नामक दैत्य ने अपने योग बल से वेदों को ब्रह्मा जी से चुरा लिया था। श्री हरि ने यह जान लिया और इस संकट के निवारण हेतु एक मछली के रूप में अवतार ग्रहण किया।
उस समय सत्य व्रत नाम के राज ऋषि केवल जल पीकर तपस्या कर रहे थे। यह वही सत्यव्रत थे जो अब वर्तमान कल्प में श्राद्ध देव नाम से वैवत्सव मन्वन्तर के मनु बने हैं।
एक दिन सत्य व्रत कृतमाला नदी से जल लेकर तर्पण कर रहे थे कि उसी समय उनकी अंजलि के जल में एक छोटी सी मछली आ गई। द्रविड़ देश के राजा सत्यव्रत ने अपनी अंजलि के जल के साथ ही फिर से उसे पानी में डाल दिया। तब उस मछली ने बड़ी करुणा के साथ कहा, "राजन आप बड़े दयालु हैं। बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। इस लिए कृपया मुझे जल में ना छोड़ें। दयालु सत्यव्रत ने दया करके मछली को कमंडल में डाल लिया और अपने साथ आश्रम ले गए। थोड़ी ही देर के बाद मछली ने कहा कि कमंडल में मुझे कष्ट हो रहा है। इस लिए कृपया आप मेरे लिए कोई बड़ा स्थान निश्चित कीजिए। सत्यव्रत ने उसको मटके में डाल दिया। फिर थोड़ी देर में और बड़ी हो गई तो उसके लिए एक सरोवर बनवा दिया गया। फिर और बड़ा सरोवर बनाया गया परंतु मछली का आकार बढ़ता ही जा रहा था। अंत में इतना बड़ा आकार हो गया कि सत्यव्रत ने उसे फिर से समुद्र में छोड़ दिया। मछली ने जब फिर से कहा कि राजर्षी मुझे समुद्र में मत छोड़ो तो सत्यव्रत को बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ। वो मोह मुग्ध हो गए। उन्होंने पूछा कि आप कौन हैं ? कहीं आप श्री हरी तो नहीं ? यदि आप श्री हरी हैं तो आप ने यह शरीर क्यों धारण किया है ?
भगवान ने कहा सत्यव्रत तुमने बिल्कुल सही पहचाना है। आज से सातवें दिन भूर्लोक आदि तीनों लोक समुद्र में डूब जाएंगे। जब यह डूबने लगेंगे, उस समय तुम्हारे पास एक बहुत बड़ी नौका आएगी तब तुम सभी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर और बीजों को साथ लेकर सप्त ऋषियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। लहराते सागर में अंधेरा होगा। प्रचण्ड आंधी से नाव डगमगाने लगेगी। तब मैं इसी रूप में आऊंगा। तुम वासुकी नाग से नाव को मेरे सींग के साथ बांध देना। तब सत्यव्रत ने भगवान की स्तुति की और उनसे तत्व ज्ञान प्राप्त किया।
सही समय आने पर सब कुछ वैसे ही घटित हुआ जैसे भगवान द्वारा बताया गया था। उसके बाद प्रलय काल आरंभ हो गया। जब प्रलय काल समाप्त हुआ तो भगवान ने अवतार लेकर असुर हय ग्रीव को मार कर उससे वेद छीन लिए और ब्रह्मा जी को दे दिए।
भगवान परशुराम अवतार कथा
भगवान सदा पृथ्वी पर संतुलन बना के रखते हैं। उस समय के शासक बहुत ही अत्याचारी और अधर्मी हो चुके थे। उनमें से सबसे अधिक अत्याचारी राजा था सहस्त्रबाहु। वह है हय वंश का अधिपति था। उसका असली नाम अर्जुन था। दत्तात्रेय जी से उसने सहस्र बाहों का वरदान पाया था। इतनी शक्ति पाकर वह बहुत अभिमानी हो गया था। उस जैसे अभिमानी राजाओं को समाप्त करने के लिए ही भगवान विष्णु जी ने परशुराम जी के रूप में अंशावतार ग्रहण किया।
भगवान परशुराम जी ने महर्षि जमदग्नि के पुत्र के रूप में जन्म लिया। बचपन में उनका नाम राम था। भगवान शिव से शिक्षा ग्रहण की। शिवजी से परसा प्राप्त किया। भगवान शिव ने ही उन्हें सबसे पहले परशुराम नाम दिया था।
सहस्त्रबाहु (अर्जुन) इतना बलशाली था कि एक बार तो उसने रावण को भी कैद कर लिया था। बाद में उसको ऋषि पुलस्त्य जी ने स्वतंत्र करवाया था। अभिमानी होने के साथ साथ वह ऋषि मुनियों पर भी अत्याचार करता था। एक बार वह ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा तो वहां से कामधेनु गाए को जबरदस्ती अपने साथ ले गया। उसके दस हज़ार पुत्र भी थे।भगवान परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। उस समय उसके सारे पुत्र भाग गए। परंतु बाद में एक दिन उन्होंने अवसर मिलने पर जमदग्नि का सिर काट दिया। परशुराम जी ने इसका बदला लिया और उन सभी को मार दिया। बाद में यज्ञ के द्वारा अपने पिता जमदग्नि को फिर से जीवित किया जो कि वर्तमान में सातवें सप्तऋषि भी बने हैं।
कहते हैं राजाओं के अत्याचारों के कारण परशुराम जी ने पृथ्वी को कई बार ऐसे राजाओं से मुक्त किया। जब भगवान श्रीराम जी का अवतार हुआ और उन्होंने मिथिला में धनुष भंग किया, उसी समय परशुराम जी ने उन्हें पहचाना कि विष्णु जी का पूर्ण अवतार हो चुका है। यह जानकर वे तपस्या करने के लिए चले गए।
जय श्री कृष्ण जी की
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