मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवत महापुराण लेख संख्या 24(श्रीरामावतार कथा)

      उस तपोभूमि पर एक दिवस, बट के नीचे बैठे हर थे।
      सच्चिदानंद के  चिंतन  में,  एकाग्रचित्त  भूतेश्वर  थे।।
   भगवान त्रिलोचन के समीप, भगवती  उमा थी भ्राज रही।
   मानो दाएं हों परम पुरुष, बाएं दिशी प्रकृति विराज रही।।
          खुली जभी योगेश की, वह समाधि  अविराम।
          मुख से निकला शब्द यह, जय मयापति राम।।
          गिरी गिरिसुता चरण में  तभी जोड़ कर हाथ।
          पूर्व जन्म  की याद  कर, बोल  उठी हे  नाथ।।
     मैंने जो की थी देह भस्म, मेरी इस बलि पर ध्यान करें।
     श्रीराम कथा रूपी  गंगा, अब  मेरे  लिए  प्रदान  करें।।

       राधेश्याम रामायण जी से इन पंक्तियों को लिया  गया है।   ऐसा कहा गया है कि राम कथा सबसे पहले भगवान  शिवजी ने  पार्वती  जी को  सुनाई  थी। इसी राम अवतार काल  में रुद्र अवतार भक्त हनुमान जी ने भी भगवान राम जी की  लीलाओं का  आनंद  लिया  था।  सबसे  प्रसिद्ध  रामायण  भगवान  श्री बालमिक जी द्वारा रचित रामायण है। श्री तुलसी दास जी द्वारा रचित  श्री रामचरितमानस  को  भी  बहुत  ही पवित्र ग्रंथ माना जाता है। जहां  तक  श्रीमद्भागवत महापुराण  की  बात  है  तो इसमें राम जी  की  कथा  ज्यादा  विस्तार  से नहीं कही गई है, क्योंकि भागवत में सभी अवतारों की कथा का संक्षिप्त  वर्णन ही मिलता है। केवल  श्रीकृष्ण  जी  की  लीलाओं  को  ज्यादा विस्तार से कहा गया है।  इस  लेख  में  राम अवतार के केवल कुछ मुख्य बिंदु ही प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
        रामावतार को विष्णु जी का पूर्ण अवतार  माना गया है।
राम कथा का  विस्तार  से  वर्णन तो अलग से  किया जाएगा । परंतु श्रीमद्भागवत महापुराण में इस कथा का बड़ा ही संक्षिप्त वर्णन मिलता है।
        सूर्य वंश में आपनें  इक्ष्वाकु  और  उसके वंश  के बारे  में पढ़ा है। इस वंश में भिन्न भिन्न समय पर  अनेक  महान  सम्राट हुए हैं। जैसे  कि  राजा सगर,  राजा रघु, और   हरिश्चंद्र आदि। इसी वंश में महाराज दशरथ जी  हुए। उनकी तीन रानियां थीं। कौशल्या माता, माता सुमित्रा और माता केकेई। कौशल्या जी के पुत्र रूप में भगवान राम जी। कैकेई के हुए भरत और माता सुमित्रा के दो पुत्र हुए लक्ष्मण और शत्रुघ्न।
        उस समय राक्षस राज रावण  और  उसके   साथियों का आतंक फैला हुआ था। ऋषि और देवता सब डरे हुए थे।  उन राक्षसों को दण्ड देने और ऋषि मुनियों को दर्शन देकर कृतार्थ करने के लिए ही भगवान विष्णु ने अपने ही चार रूप बना कर अवतार धारण किया था।
        रावण और कुंभकर्ण दोनों भाई पिछले जन्म में भी बहुत अहंकारी दैत्य  हिरण्याक्ष तथा  हिरण्यकशिपु थे।  ऋषियों  के श्राप के कारण ही उनको यह तामस देह मिली थी। अब उनको मारने के लिए भगवान को अवतार लेना पड़ा।
        अपने जीवन  काल में भगवान  राम ने कई बड़े ही उत्तम आदर्श स्थापित किए।  इसी लिए  उन्हें मर्यादा  पुरषोत्तम  राम कहा जाता है। एक पत्नी व्रत, पिता के वचन की पूर्ति के लिए राज्य का त्याग, शबरी के जूठे  बेर खाना, और  शरण  में आए हुए की रक्षा करना सत्य पर  चलना आदि अनेक उदाहरणों से उनका जीवन भरा पड़ा है।
         उनके जीवन काल में उनका गुरु  वशिष्ठ  जी  से  अल्प काल में ही सभी विद्याओं को ग्रहण कर  लेना,  विश्वामित्र  जी के साथ जाकर यज्ञ की रक्षा के लिए ताड़का, सुबाहु आदि का वध करना और मारीच आदि को दण्डित  करना,  अहल्या  का उद्धार करके स्त्री सम्मान बढ़ाना, राजा  जनक  की पुत्री  सीता जो कि लक्ष्मी जी का अवतार थीं के स्वयंवर में शिव धनुष  को भंग करके और परशुराम जी से संवाद करके संसार  को अपने बारे में संदेश देना, पिता के वचन का सम्मान करते हुए उनकी  आज्ञा का पालन करते  हुए  14 वर्ष  तक  वन में  चले  जाना, निषाद और खेवट से  मित्रता और  सौहार्दपूर्ण  संबंध  बनकर एक अच्छा सामाजिक समरसता का संदेश  देना, ऋषियों  की सेवा और सुरक्षा करना, सीता जी के  हरण  के बाद  बाली के पापों का दण्ड देना,  पापी  दैत्यों  रावण,  कुंभकर्ण,  मेघनाथ समेत अनेक  राक्षसों का  वध  करके  मानव  जाति  की  रक्षा करना, शत्रु के भाई विभीषण को शरणागति प्रदान करना और माता द्वारा वन में भेजे जाने के बावजूद  माता कैकेई  को  पूरा सम्मान देना आदि अनेक  उदाहरणों से  भगवान ने समाज  में मर्यादाओं की स्थापना की।  राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, इन चारों भाइयों ने सेवा, त्याग और प्रेम की ऐसी उदाहरण दी है कि आज भी जो परिवार इन के द्वारा दर्शाए रास्ते का थोड़ा भी अनुसरण करते हैं उनका पारिवारिक जीवन आदर्श बन जाता है। उनके द्वारा किए शासन का अच्छा उदाहरण आज भी 'राम राज्य' कहकर दिए जाता हैं।
                     जय श्रीराम जी की
         

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