सोमवार, 9 दिसंबर 2019

श्रीमद्भागवत महापुराण लेख संख्या - 22( सूर्य वंश एवं चंद्र वंश)

कलयुग की आयु    =432000 वर्ष है,
द्वापर युग की आयु  =864000 वर्ष है,
त्रेता युग की आयु   =1296000 वर्ष है,
सतयुग की आयु    =1728000 वर्ष है,
चार युगों की कुल आयु=4320000 वर्ष (इसी को चतर्युगी कहा है।)

71 चतर्यूगी =01मन्वन्तर (एक मन्वन्तर की आयु हुई 4320000×71=306720000
14मन्वन्तर=सृष्टि (कल्प) की कुल आयु 306720000×14 = 4294080000 वर्ष
एक कल्प=ब्रह्मा जी का एक दिन कहलाता है।
इतनी ही बड़ी रात्रि होती है।
ब्रह्मा जी के जाग जाने पर फिर से सृष्टि शुरू होती है
हर कल्प के बाद सृष्टि समाप्त होती है। वर्तमान कल्प का नाम
श्वेत्वाराह कल्प है। इस कल्प के 14 मन्वन्तर और उनके नाम इस प्रकार हैं:-
पहले का   स्वायमभू
दूसरे का    स्वरोचिष
तीसरे का   औत्तमी
चौथे का     तामस
पांचवें का    रैवत
छठे का      चाक्षुष
सातवें का   वैवस्वत
आठवें का   सावर्णी
नौवें का      दक्ष सावर्णि
दसवें का     ब्रह्म सावर्णि
ग्यारहवें का धर्म सावर्णि
बाहरवें का   रुद्र सावर्णि
तहरवें का    देव सावर्णि
चौदहवें का   इन्द्र सावर्णि
       उपरोक्त मन्वन्तरों में से छ: मन्वन्तर निकल चुके हैं। और सातवें मन्वन्तर की 28वीं चतर्युगी के सत्युग, त्रेता, और द्वापर निकल चुके हैं और कलयुग का आरंभ हो चुका है।
      वर्तमान वैवस्वत मन्वन्तर के मनु  विवस्वान के  पुत्र  श्राद्ध देव हैं। वर्तमान मन्वन्तर ही इनका कार्यकाल है। इनके इक्ष्वाकु आदि दस पुत्र हुए। देवताओं के प्रधान गण आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेव, मरूद गण, अश्वनीकुमार  और रिभु हैं।  इस मन्वन्तर के इन्द्र पुरंदर हैं। सप्त ऋषि कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ,  विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज हैं।
       इस मन्वन्तर में राजाओं के मुख्यत: दो वंश चले जिनको सूर्य वंश और चंद्र वंश कहा गया है।
                               सूर्य वंश
       जैसे कि आप पढ़ चुके हैं कि भगवान की नाभि से  ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हुए मारिची। मारिचि के पुत्र हुए महर्षि  कश्यप।  कश्यप  जी  के  पुत्र  हुए  वीवस्वान। उनके पुत्र हुए सूर्य और सूर्य के  पुत्र  हुए  श्राद्ध  देव  जो  कि वर्तमान मनु हैं। इनके इक्ष्वाकु आदि दस पुत्र हुए। इसी वंश में आगे  चल  कर  सगर,  दलीप,  भगीरथ,  सौदास,  रघु,  अज, दशरथ,  श्री राम, कुश, अतिथि, निशध, नभ,  पुंडरीक  आदि कई राजा  हुए। कहा  गया  है  कि  इस वंश  के  अंतिम  राजा सुमित्र हुए थे।
                         राजा निमी का वंश
       राजा निमी भी इक्ष्वाकु के पुत्र थे। एक बार उन्होंने वशिष्ट जी के बजाए किसी और से यज्ञ  करवा  लिए  जिससे  कुपित होकर वशिष्ट जी ने श्राप दे दिया। मरने से  पहले राजा ने ऋषि को भी श्राप दे दिया। दोनों को शरीर त्यागना  पड़ा। वशिष्ट जी ने मित्रवरण और उर्वशी के पुत्र  के रूप  में जन्म  लिया। उधर राजा निमी के शरीर का मंथन  करके  ऋषियों  ने एक  बालक को उत्पन किया। नाम रखा जनक।  विदेह से  उत्पन्न  होने  के कारण उसको विदेह नाम पड़ा और मंथन  से  उत्पन्न  होने  के कारण  मीथिल  नाम  पड़ा।  इस  राजा ने  ही  मिथिला  नगरी बसाई।  इस  वंश  के  सभी  राजा  बहुत  विद्वान् हुए।  सबको जनक, मिथिलेश और  विदेह आदि नामों से पुकारा जाता था। इसी वंश में सीता माता जी  के पिता  सीरध्वज  हुए इनको भी राजा जनक के नाम से ही जाना जाता है। सीर  का अर्थ होता है हल। इन्होंने हल चलाया था और उससे ही  हल की नोक से माता सीता पृथ्वी से प्रकट हुई थीं। इस लिए  इनको सीरध्वज कहा जाता है।
                                चंद्र वंश
       अपने पहले पढ़ा है कि विराट पुरुष भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ। उसमें से ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के ही एक  पुत्र हुए थे  महर्षि अत्री जी। अत्री  जी के पुत्र  हुए  चंद्रमा।  इनका  जो  वंश  आगे चला उसको चंद्र वंश कहते हैं। चंद्रमा के पुत्र हुए बुध, उनके  पुरुरवा,  उसके  आयु, उसके नहुष, उसके ययाति और ययाति के  पुत्रों के नाम पर ही यादव, यवन, भोज, म्लेच्छ और हेहय  आदि वंशों  का  आरंभ हुआ। बाद में यही वंश कई और वंशों में विभक्त हो गए।
                     जय श्रीकृष्ण जी की

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